BA Semester-1 Manovigyan - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2630
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 मनोविज्ञान के प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3

मनोविज्ञान की विधियाँ :
प्रयोगात्मक, सहसम्बन्धी एवं अवलोकन

Method of Psychology :

Experimental, Correlational and Observations

 

प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?

अथवा
मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रयोगात्मक विधि क्या है? इसके विभिन्न पदों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रयोग क्या है प्रयोगात्मक विधि के लाभ तथा सीमाओं का वर्णन कीजिए।

लघु प्रश्न
1. प्रयोगात्मक विधि के गुण-दोष की व्याख्या कीजिए।
2. प्रयोगात्मक विधि के चरण लिखिए।
3. प्रयोगात्मक विधि के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
4. प्रयोगात्मक विधि को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

मनोविज्ञान में सामाजिक परिवेश में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करने के लिये इसमें कई विधियों का प्रयोग किया जाता है। मनोविज्ञान का कार्य क्षेत्र बढ़ने के साथ इसकी कई विधियों विकसित हो रही है। मनोविज्ञान में सबसे अधिक प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है।

प्रयोग विधि
(Experimental Method)

प्रयोग विधि का अर्थ - प्रयोगात्मक विधि में मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार को समझने के लिये प्रयोग करते हैं। प्रयोग में नियंत्रित परिस्थिति (controlled situation) में व्यवहार का निरीक्षण (observation) करते हैं। इसकी विशिष्टता यह है कि इसकी पुनरावृत्ति की जा सकती है। प्रयोगात्मक विधि में सर्वप्रथम एक समस्या होती है। प्रयोगकर्ता (experimenter) का प्रमुख ध्येय समस्या का समाधान करना होता है। समस्या समाधान करने के लिये उपकल्पना (bypothesis) का निर्माण किया जाता है। उपकल्पना किसी समस्या का संभावित उत्तर होती हैं।

प्रयोगात्मक विधि के चरण

प्रयोगात्मक विधि एक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक विधि है। इसमें निम्नलिखित चरणों का प्रयोग किया जाता है

1. समस्या का उत्पन्न होना (Arise the Problem) - इस विधि का प्रथम चरण किसी समस्या का उत्पन्न होना है। उदाहरण के लिये बाल अपराध एक समस्या है। सामान्य रूप से प्रत्येक समाज में इसका किसी न किसी रूप में हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

2. प्राकल्पना तैयार करना (State the Hypothesis) - किसी समस्या के संभावित उत्तर को प्राकल्पना कहते हैं। समस्या के निर्धारण के बाद प्राकल्पना बनायी जाती है। यह प्रयोगात्मक विधि का दूसरा चरण है।

3. स्वतन्त्र चर तथा आश्रित चर को अलग-अलग करना (Discriminate the Dependent and Independent Variable) - प्राकल्पना में दो प्रकार के चर होते हैं। पहले प्रकार के चरों को आश्रित चर (dependent variable) तथा दूसरे प्रकार के चरो को स्वतन्त्र चर कहते हैं। आश्रित चर स्थिर होते है तथा स्वतन्त्र चर में जोड़-तोड किया जाता है।

4. चरों का नियंत्रण (Controll of Variables) - प्रयोग के समय अनेक चर एवं कारक (facter) आश्रित चर पर प्रभाव डालते है। ऐसे चरों को वहिरंग चर (extraneous variable) कहते है। जैसे प्रयोज्य का यौन (sex), उम्र, बुद्धि आदि। प्रयोग के वैध निष्कर्ष प्राप्त करने के लिये प्रयोगकर्ता इन वहिरंग चर या सगत चरो (relevant variable) को नियंत्रित करता है।

5. परिणामों की व्याख्या (Interpretation of the Result) - यह प्रयोगात्मक विधि का बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है। इसमें प्रयोगकर्ता प्रयोग से प्राप्त होने वाले परिणामों का विश्लेषण करता है।

6. उपकल्पना की जाँच (Verification of Hypothesis) - यह प्रयोग विधि का अंतिम चरण है। प्रयोग से प्राप्त परिणामों की तुलना उपकल्पना से की जाती है। यदि प्रयोग से प्राप्त परिणाम और उपकल्पना में समानता होती है तो उपकल्पना को सत्य मान लिया जाता है।

समाज मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि के प्रकार

(Types of Experimental Method in Social Psychology)

समाज मनोविज्ञान में तीन तरह की प्रयोगात्मक विधि अपनायी जाती है। इन तीनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है -

1. प्रयोगशाला प्रयोग विधि - इस विधि में सामाजिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिये प्रयोगशाला में प्रयोग करते है। इस विधि में एक सीमित संख्या में यादृच्छिक (randomly) रूप से प्रयोज्यों (subjects) का चयन किया जाता है। आवश्यकता अनुसार इन्हें प्रयोगात्मक समूह (experimental group) तथा नियत्रित समूह (controlled group) में बांट लेते हैं। स्वतन्त्र चर में परिवर्तन कर आश्रित चर पर इसके प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

2. क्षेत्र प्रयोग विधि - यह विधि प्रयोगात्मक विधि की दूसरी उपविधि है। इस विधि का प्रयोग कुछ ऐसे सामाजिक व्यवहार के अध्ययन में करते हैं जिनका अध्ययन प्रयोगशाला में प्रयोग विधि की राजनैतिक आन्दोलन, भीड़, अफवाह आदि सामाजिक सहायता से नही कर सकते हैं। जैसे समस्याएं। इस विधि में सामाजिक व्यवहार का अध्ययन प्रयोगशाला में न करके वास्तविक परिस्थिति (real situation) में करते हैं।

3. स्वाभाविक प्रयोग विधि - कभी-कभी समाज मनोविज्ञान में कुछ ऐसे सामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करना पड़ता है, जिसमें स्वतन्त्र चर तो होते हैं पर कुछ नैतिक मूल्यों एवं कानूनी प्रतिबन्धों के कारण उनमें परिवर्तन न तो प्रयोगशाला में और न ही क्षेत्र में कर सकते हैं।

प्रयोग विधि के गुण

(Merits of Experimental Method)

प्रयोगात्मक शोध समाज मनोविज्ञान की एक महत्वपूर्ण विधि है। यह एक वैज्ञानिक विधि हैं तथा इसके द्वारा वैज्ञानिक निष्कर्ष प्राप्त होते हैं। इस विधि के प्रमुख गुण इस प्रकार हैं

1. नियंत्रण (Control) - प्रयोगात्मक विधि में प्रयोगकर्ता स्वतन्त्र चर पर पर्याप्त नियंत्रण रखता है। इस नियंत्रण के कारण वह स्वतन्त्र चर का परिचालन तथा वहिरंग चरौ (extraneous variables) के प्रभावों को रोक पाता है और वैध निष्कर्ष प्राप्त करता है। करलिंगर (Kerlinger, 1986) ने इसे शोध का प्रमुख गुण माना है।

2. यादृच्छिकरण (Randomization) - प्रयोगात्मक विधि में यादृच्छिकरण का गुण पाया जाता है। यादृच्छिकरण की सहायता से प्रयोगकर्ता प्रयोज्यों का चयन करता है। यादृच्छिकरण की

सहायता से चुने गये प्रयोज्य अपने समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।

3. पुनरावृत्ति (Repetition) - प्रयोगशाला में परिस्थितियों को नियंत्रित कर प्रयोग करते हैं। अतः किसी भी प्रयोग को उन्हीं परिस्थितियों में दोहराया जा सकता है और पहले से प्राप्त परिणामों की जांच की जा सकती है।

4. उच्च विश्वसनीयता (High Reliability) - अध्ययन परिस्थिति में नियंत्रण के कारण परिणामों में अत्यधिक स्थिरता (Stability) एवं संगति (Consistency) पायी जाती है। वो प्रयोगात्मक विधि विश्वसनीयता को प्रदर्शित करती है।

प्रयोगात्मक विधि के दोष या सीमाएँ

1. कृत्रिमता (Artificiality) समाज मनोविज्ञान में अध्ययन परिस्थिति प्रयोगकर्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार उत्पन्न करता है। इस प्रकार वह वास्तविकता से अलग हो जाता है और ये कृत्रिम बन जाते है। प्रयोगशाला प्रयोग (Laboratory experiment) में यह दोष अधिक पाया जाता है क्योकि इस प्रयोग विधि में कठोर नियंत्रण रहता है।

2. सीमित क्षेत्र (Limited Scope) - प्रयोग विधि का क्षेत्र सीमित है क्योंकि कई प्रकार की समस्याओं का अध्ययन नियन्त्रित परिस्थिति में नहीं कर सकते। प्रयोगशाला प्रयोग विधि में यह दोष अधिक है।

3. प्रयोज्यों के सहयोग की समस्या (Problem of Co-operation of subjects)- प्रयोगात्मक विधि में यह पाया कि प्रयोज्यों द्वारा प्रयोगकर्ता को पूर्ण सहयोग नहीं मिलता है। सहयोग के अभाव के कारण वैध निष्कर्ष नहीं प्राप्त कर सकते हैं।

4. पूर्ण नियंत्रण का अभाव (Lack of Perfect Control) - इस विधि से सभी असंगत एवं अवांछनीय परिस्थितियों का नियंत्रण किया जाता है। परन्तु वास्तव में इस विधि में पूर्ण नियन्त्रण का अभाव रहता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि समाज मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि में तीन उपविधियों का प्रयोग किया जाता है। प्रयोगात्मक विधि के निश्चित चरण होते हैं। प्रयोगात्मक विधि में अनेक गुणों के बावजूद उसकी निश्चित सीमाएं भी हैं, फिर भी समाज मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग अत्यधिक किया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मनोविज्ञान की परिभाषा दीजिये। इसके लक्ष्य बताइये।
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान के उपागमों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- व्यवहार के मनोगतिकी उपागम को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- व्यवहारवादी उपागम क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- संज्ञानात्मक परिप्रेक्ष्य से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- मानवतावादी उपागम से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- मनोविज्ञान की उपयोगिता बताइये।
  8. प्रश्न- भगवद्गीता में मनोविज्ञान को किस प्रकार समाहित किया है? उल्लेख कीजिए।
  9. प्रश्न- सांख्य दर्शन में मनोविज्ञान को किस प्रकार व्याख्यित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  10. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में मनोविज्ञान किस प्रकार परिभाषित किया गया है? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  11. प्रश्न- मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि से क्या तात्पर्य है? सामाजिक परिवेश में इस विधि की क्या उपयोगिता है?
  12. प्रश्न- मनोविज्ञान की निरीक्षण विधि का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  13. प्रश्न- मनोविज्ञान को परिभाषित करते हुए इसकी विधियों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- सह-सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की गणना विधियों का वर्णन कीजिए। कोटि अंतर विधि का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सह-सम्बन्ध की दिशाएँ बताइये।
  17. प्रश्न- सह-सम्बन्ध गुणांक के निर्धारक बताइये तथा इसका महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- जब {D2 = 36 है तथा N = 10 है तो स्पीयरमैन कोटि अंतर विधि से सह-सम्बन्ध निकालिये।
  19. प्रश्न- सह सम्बन्ध गुणांक का अर्थ क्या है?
  20. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के किन्ही दो सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए
  22. प्रश्न- दीर्घीकृत ध्यान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके निर्धारक की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- चयनात्मक अवधान के स्वरूप को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  24. प्रश्न- चयनात्मक अवधान तथा दीर्घीकृत अवधान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  26. प्रश्न- क्लासिकी अनुबन्धन सिद्धान्त का विवेचन कीजिए तथा प्राचीन अनुबन्धन के प्रकार बताइये।
  27. प्रश्न- क्लासिकल अनुबंधन तथा क्लासिकल अनुबंधन को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।
  28. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन का अर्थ और उसकी आधारभूत प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अधिगम अन्तरण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकार बताइये।
  30. प्रश्न- शाब्दिक सीखना से आप क्या समझते हैं? शाब्दिक सीखने के अध्ययन में उपयुक्त सामग्रियाँ बताइए।
  31. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिये।
  32. प्रश्न- शाब्दिक सीखना में स्तरीय विश्लेषण किस प्रकार किया जाता है?
  33. प्रश्न- शाब्दिक सीखना की संगठनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का महत्त्व बताइये।
  35. प्रश्न- क्लासिकी अनुबंधन में संज्ञानात्मक कारकों की भूमिका बताइये।
  36. प्रश्न- अधिगम के नियमों का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- परिवर्जन सीखना पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- सीखने को प्रभावित करने वाले कारक।
  39. प्रश्न- स्मृति की परिभाषा दीजिये। स्मृति में सुधार कैसे किया जाता है?
  40. प्रश्न- स्मृति के प्रकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- स्मृति में संरचनात्मक एवं पुनर्सरचनात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विस्मरण के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रासंगिक तथा अर्थगत स्मृति से क्या आशय है? इनमें विभेद कीजिये।
  44. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति को संक्षेप में बताते हुये दोनों में विभेद कीजिये।
  45. प्रश्न- 'व्यतिकरण धारण को प्रभावित करता है।' इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- स्मृति के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। स्मृति को मापने की विधियों का वर्णन कीजिए।
  47. प्रश्न- विस्मरण के निर्धारक और कारणों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- संकेत आधारित विस्मरण किसे कहते हैं? विस्मरण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- स्मरण के प्रकार बताइयें।
  50. प्रश्न- अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन स्मृति में अन्तर बताइये।
  51. प्रश्न- स्मृति सहायक प्रविधियाँ क्या हैं?
  52. प्रश्न- विस्मरण के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- पुनः प्राप्ति संकेतों के अभाव में किस प्रकार विस्मरण होता है?
  54. प्रश्न- स्मृति लोप क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- विस्मरण के अवशेष-प्रसक्ति समाकलन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।
  56. प्रश्न- ध्यान के कौन-कौन से निर्धारक होते है?
  57. प्रश्न- दीर्घकालीन स्मृति तथा उसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- ध्यान की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  59. प्रश्न- बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  60. प्रश्न- बुद्धि के संज्ञानपरक उपागम से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- गिलफोर्ड के त्रिआयामी बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  63. प्रश्न- 'बुद्धि आनुवांशिकता से प्रभावित होती है या वातावरण से। स्पष्ट कीजिये।
  64. प्रश्न- बुद्धि को परिभाषित कीजिये। इसके विभिन्न प्रकारों तथा बुद्धिलब्धि के प्रत्यय का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार बताइये।
  66. प्रश्न- वंशानुक्रम तथा वातावरण बुद्धि को किस प्रकार प्रभावित करता है?
  67. प्रश्न- संस्कृति परीक्षण को किस प्रकार प्रभावित करती है?
  68. प्रश्न- परीक्षण प्राप्तांकों की व्याख्या से क्या आशय है?
  69. प्रश्न- उदाहरण सहित बुद्धि-लब्धि के प्रत्यन को स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- बुद्धि परीक्षणों के उपयोग बताइये।
  71. प्रश्न- बुद्धि लब्धि तथा विचलन बुद्धि लब्धि के अन्तर को उदाहरण सहित समझाइए।
  72. प्रश्न- बुद्धि लब्धि व बुद्धि के निर्धारक तत्व बताइये।
  73. प्रश्न- गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- थर्स्टन के समूह कारक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त के आधार पर बुद्धि की व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- स्पीयरमैन के द्विकारक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयुक्त परिभाषा देते हुए इसके अर्थ को स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- व्यक्तित्व कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया है?
  79. प्रश्न- व्यक्तित्व के विभिन्न उपागमों या सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  80. प्रश्न- व्यक्तित्व पर ऑलपोर्ट के योगदान की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- कैटेल द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के शीलगुणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  82. प्रश्न- व्यक्ति के विकास की व्याख्या फ्रायड ने किस प्रकार दी है? संक्षेप में बताइए।
  83. प्रश्न- फ्रायड ने व्यक्तित्व की गतिकी की व्याख्या किस आधार पर की है?
  84. प्रश्न- व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- व्यक्तित्व के मानवतावादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- कार्ल रोजर्स ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व की व्याख्या किस प्रकार की है? वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- व्यक्तित्व के शीलगुणों का वर्णन कीजिये।
  88. प्रश्न- प्रजातान्त्रिक व्यक्तित्व एवं निरंकुश व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिये।
  89. प्रश्न- शीलगुण सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  90. प्रश्न- शीलगुण उपागम में 'बिग फाइव' (OCEAN) संप्रत्यय की संक्षिप्त व्याख्या दीजिए।
  91. प्रश्न- प्रेरणा से आप क्या समझते हैं? आवश्यकता, प्रेरक एवं प्रलोभन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- विभिन्न शारीरिक एवं सामाजिक मनोजनित प्रेरकों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- प्रेरणाओं के संघर्ष से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान करने के तरीकों पर प्रकाश डालिये।
  94. प्रश्न- आवश्यकता-अनुक्रमिकता से क्या तात्पर्य है? मैसलो के अभिप्रेरणा सिद्धान्त का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  95. प्रश्न- उपलब्धि प्रेरक एक प्रमुख सामाजिक प्रेरक है। स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- “बाह्य अभिप्रेरण देने से आन्तरिक अभिप्रेरण में कमी आती है। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  97. प्रश्न- जैविक अभिप्रेरकों के दैहिक आधार का वर्णन कीजिए।
  98. प्रश्न- आन्तरिक प्रेरणा क्या है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
  99. प्रश्न- दाव एवं खिंचाव तंत्र अभिप्रेरित व्यवहार में किस प्रकार कार्य करता है?
  100. प्रश्न- जैविक और सामाजिक प्रेरक।
  101. प्रश्न- जैविक तथा सामाजिक अभिप्रेरकों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  102. प्रश्न- आन्तरिक एवं बाह्य अभिप्रेरण क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- प्रेरणा चक्र पर टिप्पणी लिखो।
  104. प्रश्न- अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड बताइये।
  105. प्रश्न- पशु प्रणोद की माप का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- संवेग से आप क्या वर्णन कीजिये। समझते हैं? इसकी विशेषतायें तथा इसके विकास की प्रक्रिया का
  107. प्रश्न- सांवेगिक अवस्था में क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं?
  108. प्रश्न- संवेग के जेम्स लांजे सिद्धान्त तथा कैनन बार्ड सिद्धान्त का तुलनात्मक विवरण दीजिये।
  109. प्रश्न- संवेग शैस्टर-सिंगर सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।
  110. प्रश्न- संवेग में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  111. प्रश्न- संवेगों पर किस प्रकार नियंत्रण कर सकते हैं? स्पष्ट कीजिये।
  112. प्रश्न- 'पॉलीग्राफिक विधि झूठ को मापने की उत्तम विधि है। स्पष्ट कीजिये।
  113. प्रश्न- संवेग के
  114. प्रश्न- संवेग के कैननबार्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उनकी मानसिक योग्यता सामान्य छात्रों से कम होती है।
  115. प्रश्न- सार्वभौमिक एवं विशिष्ट संस्कृति संवेग की अभिवृत्ति के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  116. प्रश्न- गैल्वेनिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- संवेग के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- संवेगावस्था में होने वाले बाह्य शारीरिक परिवर्तनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  120. प्रश्न- झूठ संसूचना से क्या आशय है?
  121. प्रश्न- संवेग तथा भाव में अन्तर बताइये।
  122. प्रश्न- संवेग के मापन की कोई दो विधियाँ बताइये।

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